इसरो के बारे में जानकारी हिंदी में: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, जिसे हम सामान्यत ISRO के नाम से जानते हैं, ने हाल ही में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि को हासिल किया। ISRO के नवनियुक्त प्रमुख एस. सोमनाथ के नेतृत्व में, चंद्रयान-3 मिशन ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सुरक्षित रूप से उतरकर भारत को इस क्षेत्र में एक मजबूत स्थिति दिलाई है। इस सफलता के माध्यम से ISRO ने एक बार फिर दुनिया को दिखाया कि भारत अंतरिक्ष विज्ञान में कैसे नए मापदंड स्थिर कर रहा है।
इस लेख में, हम ISRO के इतिहास को हिंदी में विस्तार से जानेंगे और समझेंगे कि इस संगठन ने भारत के लिए और वैज्ञानिक समुदाय के लिए क्या महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चंद्रयान-3 की सफलता ने इस संगठन के उज्ज्वल भविष्य को और भी रोशन कर दिया है, और इसे विश्व स्तर पर मान्यता दिलाई है। आइए, इस रोमांचक और उत्कृष्ट यात्रा में हमारे साथ शामिल हों।
ISRO: Jankari, Udyam, Aur Vikas

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, जिसे ISRO के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने अस्तित्व के चार दशकों में भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक मजबूत पहचान दी है। भले ही यह संगठन 1969 में बना था, लेकिन इसकी नींव डॉ. विक्रम साराभाई द्वारा 1962 में रखी गई थी, जब भारतीय राष्ट्रीय समिति अंतरिक्ष अनुसंधान (INCOSPAR) की स्थापना हुई थी।
इस लेख में हम ISRO के इतिहास, उसकी स्थापना, उसके संस्थापक, और उसके प्रमुख उद्देश्यों पर चर्चा करेंगे। हम जानेंगे कि ISRO के विभिन्न केंद्र क्या हैं और उनका कार्यक्षेत्र क्या है। इसके अलावा, हम ISRO के योगदान और इसके नेतृत्व संरचना के बारे में भी बात करेंगे।
ISRO का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता और मानवता के लिए अंतरिक्ष तकनीक के लाभों को हासिल करना है। इसके लिए, उन्होंने विभिन्न प्रकार के उपग्रह लॉन्च किए हैं जो कम्यूनिकेशन, टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग, और मौसम विज्ञान में योगदान करते हैं।
इस संगठन का मुख्यालय बेंगलूरु में है, लेकिन इसके केंद्र और इकाइयां देशभर में फैली हुई हैं। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC), U R Rao सैटेलाइट केंद्र (URSC), सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC), और अन्य केंद्र इस संगठन की विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करते हैं।
ISRO के प्रयासों की महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने सिर्फ तकनीकी प्रगति में ही योगदान नहीं दिया, बल्कि विज्ञान और शिक्षा में भी अपना योगदान दिया है।
लेख के अंत में, हम कुछ ऐसे प्रश्नों के उत्तर भी देंगे जो लोगों के मन में आमतौर पर होते हैं, जैसे “ISRO kya hai?” (ISRO क्या है?), “ISRO ka sangsthapan kab hua tha?”, “Iska founder kaun hai?”, ताकि इसे गूगल SERP में भी ध्यान में रखा जा सके।
इस लेख के माध्यम से हम आपको ISRO के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने का प्रयास करेंगे, ताकि आप इस महत्वपूर्ण संगठन के बारे में पूरी तरह से समझ सकें।
इसरो क्या है इन हिंदी?(ISRO Kya Hai Hindi Mein)
ISRO क्या है? – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, जिसे ISRO के नाम से जाना जाता है, भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है जिसका मुख्यालय बेंगलूर में है। यह संगठन 1969 में स्थापित हुआ था और इसका मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष तकनीक के विकास और उसके विभिन्न उपयोगों में भारत और मानवता के लिए लाभ उठाना है। ISRO ने समय-समय पर विभिन्न सैटेलाइट्स और लॉन्च व्हीकल्स को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा है। ये मिशन्स टेलीकॉम्युनिकेशन, मौसम विज्ञान, भूमि और जल संसाधन प्रबंधन, और विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान करते हैं। ISRO के माध्यम से भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी वैश्विक पहचान बनाई है। इस लेख में, हम ISRO के विकास, उसके महत्वपूर्ण मिशन्स, और उसके भारतीय समाज और विज्ञान में किए गए योगदान को विस्तार से समझेंगे।
विशेषता | जानकारी |
---|---|
पूरा नाम | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन |
इसरो का अध्यक्ष कौन है | Sreedhara Somanath |
स्थापना की तारीख | 15 अगस्त, 1969 |
पूर्ववर्ती | भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) |
इसरो का मुख्यालय कहां है? | बेंगलूर, कर्नाटक, भारत |
मातृ संगठन | भारत सरकार का अंतरिक्ष विभाग (DOS) |
प्रमुख लॉन्च वाहन | PSLV, GSLV, GSLV मार्क III |
मुख्य उद्देश्य | अंतरिक्ष तकनीक के विकास और विभिन्न राष्ट्रीय जरूरतों के लिए उपयोग |
प्रमुख परियोजनाएं | चंद्रयान, मंगल ओर्बिटर मिशन, NavIC |
प्रमुख केंद्र | VSSC, URSC, SDSC, LPSC, SAC, NRSC |
शीर्ष निकाय | अंतरिक्ष आयोग |
इसरो का फुल फॉर्म – ISRO ka full form kya hai?
इसरो का फुल फॉर्म “भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन – Indian Space Research Organisation” है।
इसरो का मुख्य कार्य क्या है?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का मुख्य कार्य अंतरिक्ष आधारित कार्यक्रमों, अंतरिक्ष अन्वेषण, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग और संबंधित प्रौद्योगिकियों का विकास करना है। ISRO विश्व में उन छह सरकारी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है, जिनके पास पूरी प्रक्षेपण क्षमताएं हैं, क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग करते हैं, एक्सट्राटेरेस्ट्रियल मिशनों को लॉन्च करते हैं और कृत्रिम उपग्रहों की एक बड़ी सेना का संचालन करते हैं।

ISRO के मुख्य कार्यक्रमों में संचार, टेलीविजन प्रसारण, मौसम विज्ञान, भू-संसाधन मॉनिटरिंग और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित उपग्रह सेवाएं शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भी विभिन्न पहलें की हैं।
ISRO ने भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया है, और विकसित और उत्कृष्ट अंतरिक्ष कार्यक्रमों का निर्माण किया है।
इसरो का मुख्यालय कहां है?
इसरो (ISRO) का मुख्यालय भारत के बेंगलूरु (Bengaluru) शहर में स्थित है। यहां से संगठन के सभी मुख्य कार्यक्रमों और परियोजनाओं का संचालन और नियंत्रण किया जाता है। बेंगलूरु मुख्यालय के अलावा, इसरो की गतिविधियाँ भारत भर में विभिन्न केंद्रों और इकाइयों में फैली हुई हैं, जैसे कि विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) तिरुवनंतपुरम में, यू आर राव सैटेलाइट केंद्र (URSC) बेंगलूरु में, और सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) श्रीहरिकोटा में, आदि।
इसरो के वर्तमान अध्यक्ष कौन है 2023

वर्ष 2023 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की कमान श्रीधर सोमनाथ के हाथ में है, जो इस संगठन के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं।
2023 में इसरो का नेतृत्व: श्रीधर सोमनाथ का युग
2023 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) श्रीधर सोमनाथ के कुशल नेतृत्व में है, जो अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। सोमनाथ की नियुक्ति इसरो के गौरवशाली इतिहास में एक और मील का पत्थर है, जो संगठन की दूरदर्शी नेतृत्व की लंबे समय से चली आ रही परंपरा को जारी रखेगी।
इसरो अध्यक्ष हमेशा संगठन को नई वैज्ञानिक और तकनीकी ऊंचाइयों पर ले जाने में सबसे आगे रहे हैं। उन्होंने विभिन्न अभियानों के माध्यम से इसरो का मार्गदर्शन किया है, चाहे वे पृथ्वी अवलोकन, संचार, या यहां तक कि अंतरग्रहीय अभियानों से संबंधित हों। इस संदर्भ में, श्रीधर सोमनाथ की नियुक्ति भविष्य के लिए नए सिरे से प्रत्याशा की भावना लाती है।
श्रीधर सोमनाथ ऐसे समय में पदभार संभाल रहे हैं जब इसरो उन्नत संचार उपग्रहों, अंतरग्रहीय मिशन और बहुप्रतीक्षित गगनयान मिशन सहित कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को प्राप्त करने के लिए उत्सुक है। इन परियोजनाओं का लक्ष्य न केवल अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की क्षमताओं को बढ़ाना है बल्कि वैश्विक वैज्ञानिक समझ में महत्वपूर्ण योगदान देना भी है।
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के विशेष क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता के साथ-साथ सोमनाथ के नेतृत्व गुण उन्हें एक ऐसे संगठन का नेतृत्व करने के लिए आदर्श रूप से उपयुक्त बनाते हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान में अपने योगदान के लिए विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है। इसरो के प्रमुख होने के साथ आने वाली जिम्मेदारियों और अवसरों को देखते हुए, उम्मीदें बहुत अधिक हैं।
सोमनाथ के नेतृत्व में, इसरो के अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह प्रौद्योगिकी में एक वैश्विक खिलाड़ी के रूप में अपनी भूमिका जारी रखने की संभावना है। उनका मार्गदर्शन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ नए सहयोग को भी सामने ला सकता है, जिससे ब्रह्मांड के रहस्यों को उजागर करने की खोज में वैश्विक सहयोग की भावना को बढ़ावा मिल सकता है।
जैसे-जैसे इसरो आगे बढ़ रहा है, उसके प्रयासों का न केवल भारत पर बल्कि पूरी मानवता पर प्रभाव पड़ना तय है। और श्रीधर सोमनाथ जैसे नेताओं के नेतृत्व में, भविष्य वास्तव में आशाजनक दिखता है।
ISRO का इतिहास (ISRO History in Hindi) – INCOSPAR से ISRO तक का सफर
ISRO का इतिहास 1962 में शुरू हुआ, जब भारतीय राष्ट्रीय समिति अंतरिक्ष अनुसंधान (INCOSPAR) की स्थापना हुई। इसके पीछे का विचार था कि अंतरिक्ष तकनीक का सही उपयोग और अनुसंधान करके भारत अपने विकास में नई ऊर्जा जोड़ सकता है। इस समिति की स्थापना के पीछे मुख्य भूमिका डॉ. विक्रम साराभाई की थी, जिन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा निर्धारित की।

इसरो की स्थापना कब हुई: 15 अगस्त, 1969
INCOSPAR की सफलता और इसके कार्यक्रमों के उत्कृष्ट परिणाम ने भारत सरकार को इसे एक और विस्तारित रूप में प्रस्तुत करने की प्रेरणा दी। इसी प्रेरणा के साथ, 15 अगस्त 1969 को ISRO की स्थापना हुई। इस दिन को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है, और इसके बनने से भारत ने एक नई स्वतंत्रता की शुरुआत की: अंतरिक्ष के क्षेत्र में स्वतंत्रता।
अंतरिक्ष विभाग (Department of Space) की स्थापना: 1972
ISRO की स्थापना के तीन साल बाद, 1972 में भारत सरकार ने अंतरिक्ष विभाग (DOS) की स्थापना की। DOS ने ISRO को उसके कार्यक्रमों में और भी विस्तार और गहराई प्रदान की। DOS के अंतर्गत, ISRO ने अपने विभिन्न मिशन और परियोजनाओं को और भी विस्तारित किया और भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में एक गंभीर खिलाड़ी बनाया।
इस विभाग की स्थापना से ISRO को एक संरचनात्मक और संगठनात्मक ढांचा मिला, जिससे वे अपने लक्ष्यों को और भी कुशलतापूर्वक प्राप्त कर सके। इस विभाग के अधीन, ISRO के कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स और मिशन्स का आरंभ हुआ, जिसमें से कुछ ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में क्रांति लाई।
इसरो की स्थापना किसने की?: डॉ. विक्रम साराभाई
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई थे, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पिता माना जाता है। उनका जन्म 12 अगस्त 1919 में अहमदाबाद, गुजरात में हुआ था। वे एक उद्यमी परिवार से थे, लेकिन उनकी रुचियां विज्ञान और अनुसंधान में थीं।
उनका दृष्टिकोण और लक्ष्य:
डॉ. विक्रम साराभाई का मानना था कि अंतरिक्ष विज्ञान केवल एक ‘एलीट’ विज्ञान नहीं है, बल्कि इसका सीधा लाभ भारत के विकास में हो सकता है। उनका दृष्टिकोण था कि अंतरिक्ष तकनीक का उपयोग भारतीय समाज और उसके विकास में किया जा सकता है।
उनकी भूमिका:
उनके विजन के अनुसार, 1962 में भारत सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) का गठन किया। इस समिति का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान में अनुसंधान करना और उसे भारतीय जनता के लिए उपयोगी बनाना था। इसके बाद, 1969 में INCOSPAR की जगह ISRO का गठन हुआ, जिसमें अंतरिक्ष विज्ञान के उपयोग और अनुसंधान के क्षेत्र में और भी विस्तार किया गया।
डॉ. विक्रम साराभाई ने ISRO की नींव रखकर भारत को अंतरिक्ष में एक नाम बनाया। उनके उत्कृष्ट लीडरशिप और विजन की वजह से ही आज ISRO विश्व में अपने उचित मूल्य वाले मिशन्स के लिए प्रसिद्ध है।
डॉ. विक्रम साराभाई का जीवन और उनके कार्य ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को नया दिशा दी है, और उनकी इन्हीं सोचों और प्रयासों से ISRO ने भारतीय समाज और विज्ञान में अपना योगदान दिया है।
मुख्य उद्देश्य: ISRO/DOS का लक्ष्य और मिशन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और भारत सरकार का अंतरिक्ष विभाग (DOS) मिलकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को संचालित करते हैं। इन दोनों का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष तकनीक के विकास और उसके विभिन्न राष्ट्रीय जरूरतों में उपयोग है।
विकास और उपयोग:
- संवाद और प्रसारण: ISRO ने भारत में टेलीकॉम्युनिकेशन और टेलीविजन प्रसारण के क्षेत्र में अनुपम योगदान दिया है। GSAT और INSAT जैसे उपग्रह इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- मौसम और जलवायु: ISRO ने मौसम विज्ञान में भी बहुत कुछ किया है। उनके मौसम उपग्रहों के द्वारा भारतीय मौसम विभाग को आंधी, बारिश और अन्य मौसमी परिवर्तनों की सही जानकारी मिलती है।
- संसाधन प्रबंधन: ISRO के द्वारा भूमि और जल संसाधन के प्रबंधन में मदद की जाती है। भू-उपग्रहों के माध्यम से जमीन की स्थिति, वनस्पति और जल स्तर की निगरानी की जाती है।
- नेविगेशन: NavIC सिस्टम के माध्यम से, ISRO ने भारतीय उपमहाद्वीप में सटीक नेविगेशन और समय जानकारी सेवा की शुरुआत की है।
- विज्ञान और शिक्षा: ISRO ने विज्ञान और शिक्षा में भी योगदान दिया है। उनके अंतरिक्ष मिशन, जैसे कि चंद्रयान और मंगल ओर्बिटर मिशन, ने विज्ञान में भारतीय युवाओं की रुचि बढ़ाई है।
ISRO और DOS का उद्देश्य केवल अंतरिक्ष तकनीक का विकास नहीं, बल्कि उसे भारतीय समाज और उसकी जरूरतों के अनुसार तैयार करना भी है। इससे राष्ट्रीय विकास में योगदान मिलता है और भारतीय जनता के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
प्रमुख योगदान: विज्ञान और प्रौद्योगिकी में ISRO का अवदान
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भी अपना अमिट योगदान दिया है, जिसमें उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (Launch Vehicles) और उपग्रह प्रणालियां (Satellite Systems) शामिल हैं।
पी.एस.एल.वी (PSLV) और जी.एस.एल.वी (GSLV)
- पोलार सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV): PSLV का उपयोग धरती की कम ऊंचाई के कक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने के लिए किया जाता है। यह वाहन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की बहुत भरोसेमंद और सफल वाहन है।
- जिओ-स्थिर कक्षीय लॉन्च व्हीकल (GSLV): GSLV का उपयोग उच्च कक्ष में उपग्रह प्रक्षेपित करने के लिए किया जाता है। इसमें क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग होता है, जो इसे अपने प्रकार की एक अद्वितीय तकनीक मानते हैं।

उपग्रह प्रणालियां
- संचार उपग्रह (Communication Satellites): INSAT और GSAT सीरीज़ के उपग्रह भारत में टेलीकॉम्युनिकेशन, टेलीविजन प्रसारण, और इंटरनेट सेवाओं में योगदान करते हैं।
- नेविगेशन उपग्रह (Navigation Satellites): NavIC सिस्टम भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एक उन्नत नेविगेशन सिस्टम प्रदान करता है।
- जासूसी उपग्रह (Spy Satellites): इन उपग्रहों का उपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा और जासूसी में किया जाता है।
विज्ञान शिक्षा में योगदान
ISRO ने विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहलें की हैं। उनके मिशन जैसे चंद्रयान और मंगल ओर्बिटर मिशन ने विज्ञान में भारतीय युवाओं की रुचि बढ़ाई है। इसके अलावा, ISRO ने विभिन्न विद्यालयों और कॉलेजों में अंतरिक्ष विज्ञान के विषय में सेमिनार्स और वर्कशॉप्स भी आयोजित किए हैं, ताकि नए पीढ़ी को इस विषय में दिलचस्पी हो।
इन सबके माध्यम से, ISRO ने न केवल भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को मजबूती प्रदान की है, बल्कि भारतीय समाज और विज्ञान में भी अपना अमूल्य योगदान दिया है।
प्रमुख योगदान
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपने महत्वपूर्ण योगदान के माध्यम से भारत को गर्वित किया है। ISRO के द्वारा विकसित उपग्रह लॉन्च वाहन, PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) और GSLV (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle), ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय उपग्रहों को सफलतापूर्वक प्रक्षिपण किया है। ISRO ने विभिन्न क्षेत्रों में भी अपने योगदान दिए हैं, जैसे भूमि अवलोकन, मौसम विज्ञान, और नेविगेशन। साथ ही, यह संगठन देश में विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने में भी अपना योगदान दे रहा है।
केंद्र और इकाइयाँ
ISRO के विभिन्न केंद्रों में उनकी विशेष भूमिकाएं हैं – VSSC (Vikram Sarabhai Space Centre) लॉन्च वाहनों का निर्माण करता है, URSC (U R Rao Satellite Centre) उपग्रहों का विकास करता है, SDSC (Satish Dhawan Space Centre) उपग्रहों और लॉन्च वाहनों का प्रक्षेपण करता है, LPSC (Liquid Propulsion Systems Centre) तरल प्रोपल्शन सिस्टम का विकास करता है, SAC (Space Applications Centre) और NRSC (National Remote Sensing Centre) उपग्रह डेटा का प्रसंस्करण और वितरण करते हैं।
नेतृत्व
ISRO के गवर्नेंस संरचना में अध्यक्ष और अंतरिक्ष आयोग की भूमिका है। ISRO के अध्यक्ष अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष भी होते हैं और भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग के सचिव भी होते हैं।
निष्कर्ष
ISRO का महत्व तकनीकी उन्नति में और भारत को वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र पर स्थान देने में है। इसने भारतीय उच्च प्रौद्योगिकी को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाई है।
FAQs
- ISRO क्या है?: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भारत सरकार का एक अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन है।
- ISRO का संस्थापन कब हुआ था?: ISRO का संस्थापन 15 अगस्त 1969 को हुआ था।
- इसका फाउंडर कौन है?: डॉ. विक्रम साराभाई ISRO के फाउंडर माने जाते हैं।
अतिरिक्त संसाधन
Author Profile

- अभिजीत चेतिया Hindimedium.net के संस्थापक हैं। उन्हें लेखन और ब्लॉगिंग करना बहुत पसंद है, विशेष रूप से व्यवसाय, तकनीक और मनोरंजन पर। वे एक वर्चुअल असिस्टेंट टीम का भी प्रबंधन करते हैं। फाइवर पर एक टॉप सेलर भी हैं। अभिजीत ने हिंदीमीडियम.नेट की स्थापना अपने लेखन और विचारों को एक प्लेटफॉर्म देने के लिए की थी। वे एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के साथ अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए हिंदी ब्लॉगोस्फीयर को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। www.linkedin.com/in/abhijitchetia
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